पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जाय शोधपत्रो को

 लोकल इंदौर 28 अगस्त ।पुरातत्व विभाग में कई विद्वानों ने अलग-अलग एतिहासिक विषयों पर शोध कार्य किया है। जंगल-जंगल भटक अपनी खोज को पूरा किया। लेकिन उनकी खोज अलमारियों में दफन होकर रह गई है। इन शोधपत्रों को एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जाना चाहिए, ताकि अधिक से अधिक लोगों को इतिहास की नवीन जानकारी मिल सके।
 यह कहना था रीवा यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति शिव नारायण यादव  का जो उन्होंने  मंगलवार को इंदौर में पुरातत्व विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए व्यक्त किये ।
दो दिवसीय इस  संगोष्ठी में परमार कालीन 500 वर्ष की सभ्यता को लेकर पहले दिन 26 शोधपत्र देशभर से आए विभिन्न विद्वानों ने प्रस्तुत किए। इस दौरान परमार स्थापत्य, कला और संस्कृति को लेकर कई नवीन जानकारियां उजागर हुई।
परमार काल 800 से 1300 ईसी पूर्व तक चला। जुनागढ़ गुजरात से आए प्रद्ययूत्न खाचा अपने शोध-पत्र में गुजरात के परमार शासकों के अभिलेखों के बारे में बताया उन्होंने बताया कि गुजरात में परमार शासकों की एक शाखा ने धर्म परिवर्तन कर इस्लाम धर्म में परिवर्तित हो गई थी। भोपाल के नारायण व्यास ने भोजपुर मंदिर के आस-पास के मंदिरों के बारे में पॉवर पाइंट के माध्यम से बताया। उन्होंने बताया कि भोजपुर के आस-पास परमार काल के समय जलाधारी(शिवलिंग) बनाए जाते थे। संगोष्ठी के पहले चरण का आभार प्रकाश परांजपे और प्रवीण श्रीवास्तव ने माना।

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