प्रकृति की शक्ति ग्रहण करने के लिए शक्ति पूजा

लोकल इंदौर 11 अप्रेल ।चैत्र नवरात्रि ही मुख्य माने जाते हैं। चैत्र के नवरात्र में शक्ति की उपासना तो प्रसिद्ध है ही, साथ ही शक्तिधर की उपासना भी की जाती है।
ऐसी मान्यता है कि स्त्री हो या पुरुष, सबको नवरात्रि पर व्रत करना चाहिए। यदि किसी कारणवश स्वयं न कर सकें तो प्रतिनिधि यानि पति, पत्नी, ज्येष्ठ पुत्र, सहोदर या ब्राह्मण द्वारा कराएं। नवरात्रि में घटस्थापन के बाद सूतक हो जाए तो कोई दोष नहीं, परंतु पहले हो जाए तो पूजनादि स्वयं न करें। चैत्र के नवरात्र में शक्ति की उपासना तो प्रसिद्ध है ही, साथ ही शक्तिधर की उपासना भी की जाती है. चैत्र के नवरात्र में शक्ति की उपासना तो प्रसिद्ध है ही, साथ ही शक्तिधर की उपासना भी की जाती है.
नवरात्रि के पहले दिन का महत्व:
नवरात्रि वर्ष में चार बार आती है. जिसमे चैत्र नवरात्रियों का विशेष महत्व है। चैत्र नवरात्रि से ही विक्रम संवत की शुरुआत होती है। इन दिनों प्रकृति से एक विशेष तरह की शक्ति निकलती है। इस शक्ति को ग्रहण करने के लिए इन दिनों में शक्ति पूजा या नवदुर्गा की पूजा का विधान है। इसमें मां की नौ शक्तियों की पूजा अलग-अलग दिन की जाती है। पहले दिन मां के शैलपुत्री स्वरुप की उपासना की जाती है। इस दिन से कई लोग नौ दिनों या दो दिन का उपवास रखते हैं।
पहले दिन की पूजा का विधान:
इस दिन से नौ दिनों का या दो दिनों का व्रत रखा जाता है। जो लोग नौ दिनों का व्रत रखेंगे वो दशमी को पारायण करेंगे। जो पहली और अष्टमी को उपवास रखेंगे वो नवमी को पारायण करेंगे। इस दिन कलश की स्थापना करके अखंड ज्योति भी जला सकते हैं। प्रातः और सायंकाल दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और आरती भी करें।
अगर सप्तशती का पाठ नहीं कर सकते तो नवार्ण मंत्र का जाप करें। पूरे दस दिन खान-पान आचरण में सात्विकता रखें। मां को आक, मदार, दूब और तुलसी बिल्कुल न चढ़ाएं। बेला, चमेली, कमल और दूसरे पुष्प मां को चढ़ाए जा सकते हैं।