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… तो इसलिए बदले गए 6 अध्यक्ष!
… तो इसलिए बदले गए 6 अध्यक्ष!
हाल ही में भाजपा ने छह जिलों के अध्यक्ष बदल दिए! इनमें एक इंदौर है। इस अचानक हुए बदलाव को लेकर कई तरह कारण खोजे गए! ये भी कहा गया कि जो मुख्यमंत्री की जनआशीर्वाद यात्रा की शुरुआत में भीड़ ले जाने में कामयाब नहीं हुआ, उससे कुर्सी छीन ली गई! दरअसल, बात ये नहीं है। इन सभी जिला अध्यक्षों को हटाए जाने का कारण सिर्फ ये है कि वे मुख्यमंत्री की कसौटी पर खरे नहीं उतरे! चुनाव के मद्देनजर इन्हें जिस तरह परखा गया, उस पर वे सटीक नहीं बैठे! सिर्फ देवास के गोपीकृष्ण व्यास को उनकी बढ़ती उम्र की वजह से हटाया गया है। खरगोन में बाबूलाल महाजन को हटाकर परसराम चौहान बैठाया गया, इसका सिर्फ छोटा सा कारण है कि नए अध्यक्ष जाति से किरार हैं, यानी मुख्यमंत्री के समाज बंधु! विदिशा मुख्यमंत्री का इलाका है, इसलिए वहाँ का अध्यक्ष क्यों बदला गया, ये बताने की जरुरत नहीं! उज्जैन के अध्यक्ष की पारस जैन से पटरी बैठ रही थी, इसलिए उन्हें जाना पड़ा! लेकिन, इंदौर के शहर भाजपा अध्यक्ष कैलाश शर्मा को हटाने के पीछे कई कारण सामने आए! उनमें सबसे कॉमन है कि कई नेता नहीं चाहते थे कि उनकी अध्यक्षता में विधानसभा चुनाव हों! दूसरा, गोपीकृष्ण गुप्ता शहर अध्यक्ष की कुर्सी सौंपकर ये संदेश दे दिया गया कि वे अब टिकट की लाइन में नहीं हैं।
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अध्यक्ष बनते ही समीकरण बदले!
गोपीकृष्ण गुप्ता इंदौर शहर भाजपा के अध्यक्ष क्या बने, शहर की भाजपा राजनीति के समीकरण ही बदल गए! अभी तक विधानसभा क्षेत्र क्रमांक-3 से टिकट के तीन उम्मीदवार गोपीकृष्ण गुप्ता, ललित पोरवाल और गोविंद मालू थे! क्योंकि, ये लगभग तय माना जा रहा है कि उषा ठाकुर को अब यहाँ से टिकट नहीं मिलेगा! अब इस लिस्ट में से गोपी हटते ही ही ललित पोरवाल और गोविंद मालू बांछे खिल गई! ये भी देखा जा रहा है कि एक-दूसरे के नाम से ही चिढ़ने वाले अब दोस्त बन गए! मालू भी आजकल गोपी गुप्ता की संगठन क्षमता की तारीफ के पुल बांधते नजर आते हैं। उधर, गोपी भी जहाँ देखो वहाँ मालू से खुसुर-पुसुर करते रहते हैं। चुनाव घोषणा पत्र के सुझाव को लेकर कैलाश विजयवर्गीय ने जो बैठक बुलाई थी, उसमें दोनों की जुगलबंदी देखकर स्पष्ट हो गया कि राजनीति में कोई किसी का स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता!
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सुरक्षित है, सिर्फ 2 नंबर का टिकट
इंदौर शहर में राऊ समेत फिलहाल 6 सीटें भाजपा के पास हैं। सिर्फ राऊ में ही कांग्रेस के जीतू पटवारी विधायक हैं। अब सवाल है कि क्या भाजपा इन सभी को फिर से चुनाव मैदान में उतारेगी? तो जानने-समझने वालों का कहना होता है कि क्षेत्र क्रमांक 3 की विधायक उषा ठाकुर को छोड़कर शायद ही किसी का टिकट कटे! लेकिन, भाजपा के अंदर जो मंत्रणाओं का दौर चल रहा है, वहाँ से कुछ अलग ही कहानी निकलकर बाहर आ रही है! वहाँ से सिर्फ क्षेत्र क्रमांक 2 को ही हरी झंडी दिए जाने की खबर है। यानी एक, तीन, चार और पाँच के टिकट भी सूली पर टंगे हैं। क्षेत्र 4 से मालिनी गौड़ विधायक भी हैं और इंदौर नगर निगम की महापौर भी इसलिए उनका टिकट भी कटने की स्थिति में है। तर्क ये दिया जा रहा है कि जब निगम, मंडलों के अध्यक्षों और उपाध्यक्षों को टिकट न देने का फैसला किया गया है, तो फिर महापौर को क्यों टिकट मिले? एक कहानी ये भी है कि मुख्यमंत्री मालिनी गौड़ में भविष्य का सांसद देख रहे हैं।
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मुकाबले के लिए ऐसे तैयार होती कांग्रेस
दो महीने पहले जब कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था, तब भाजपा में घबराहट दिखाई दी थी। उन्हें लगा था कि अब कांग्रेस भी ज्यादा बेहतर तैयारी से मुकाबले उतरेगी! क्योंकि, कांग्रेस की बैटरी जिस तरह चार्ज हुई थी, ये स्वाभाविक भी था! लेकिन, धीरे-धीरे कांग्रेस की बैटरी डिस्चार्ज होती लग रही है। जो उत्साह, जोश और मुकाबले की इच्छाशक्ति कांग्रेस में दिखी थी, वो ठंडी पड़ गई! पार्टी के जिन पदाधिकारियों को प्रदेशभर में दौरे और बैठकें करना थी, वो कहाँ है किसी को पता नहीं! अब तो कांग्रेस दफ्तर की ये चटखारेदार ख़बरें ज्यादा सुनी जा रही है कि अध्यक्ष कमलनाथ कॉरपोरेट तरीके से दफ्तर चला रहे हैं! कोई भी उनके सचिव मेघलानी से अपॉइंटमेंट लिए बिना मिल नहीं सकता! यहाँ तक तो ठीक है, लेकिन नई मीडिया प्रभारी शोभा ओझा ने भी कुर्सी सँभालते ही मीडिया को अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए! वे दरवाजा बंद करके बैठती हैं, उनका दरवाजा तभी खुलता है, जब उनका मन करे! कमलनाथ के मीडिया सलाहकार नरेंद्र सलूजा भोपाल के पत्रकारों के फोन नहीं उठाते! ऐसे में कोई कैसे मानेगा कि भाजपा से मुकाबले के लिए कांग्रेस पूरी तरह तैयार है? इस वक़्त जब कांग्रेस को भाजपा पर जवाबी हमले की तैयारी करना चाहिए, कहीं कोई हलचल नजर नहीं आ रही! शांतिकाल में जिस केके मिश्रा ने भाजपा पर लगातार हमले किए थे और जिन्हें मुद्दे खड़े करने में महारथ हांसिल है, उन्हें बाहर बैठा दिया गया।
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भाजपा कार्यालय खाली
इन दिनों भोपाल भाजपा कार्यालय नेताओं से खाली है। संगठन महामंत्री और प्रदेश अध्यक्ष जिलों में चुनावी बैठकों में व्यस्त हैं, मुख्यमंत्री जन आशीर्वाद यात्रा में लगे हैं। ऐसे में चुनावी मौसम में भोपाल कार्यालय आने वाले कार्यकर्ताओं और नेताओं से मिलने वाला कोई नहीं है। प्रदेशभर से आने वाले कार्यकर्ता दिनभर घूम-फिरकर शाम को लौट जाते हैं। कार्यालय में उन्हें सही जवाब भी मिलता! कभी नेताओं के शाम तक आने का भरोसा दिलाया जाता है, कभी सुबह आने को कहा जाता है! प्रदेशभर के कार्यकर्ताओं और नेताओं के लिए मुसीबत ये है कि उन्हें कैसे पता चले कि कब भोपाल आना है और कब नहीं!
