लोकल इंदौर 14 मार्च ।इंदौर राजस्व संभाग के आठ जिलों में से 5 जिलों क्रमश: अलीराजपुर, झाबुआ, धार, बड़वानी, तथा खरगोन जिलों के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में प्रतिवर्ष होलिका दहन से ठीक सात दिन पूर्व से क्रमश: अलग-अलग स्थानों पर निरंतर सात दिन तक अंचल के बड़े-बड़े ग्रामीण स्थलों के हाट बाजारों में अत्यंत हर्षोल्लास एवं धूमधाम से प्रतिवर्ष मनाये जाने वाले भगोरिया पर्व का यद्यपि कोई अधिकृत इतिहास तो नहीं मिलता है, लेकिन इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि ‘‘भगोरिया’’ आदिवासी संस्कृति के आनंद एवं उल्लास का जीता-जागता पर्व है। पलास का वृक्ष फूलों से लद जाता है, महुआ पेड़ों से झड़ने लगता है, रबी की फसलों के साथ कृषि वर्ष पूरा हो जाता है, होली की मस्ती और प्रकृति के इस दौरान बदलते मौसमी बयार के कारण भगोरिया पर्व और अधिक मादक बन जाता है।
भगोरिया पर्व मनाये जाने के बारे में कई प्रकार की कहावतें ग्रामीणों के बीच प्रचलित हैं। इन्हीं कहावतों के तहत कुछ आदिवासी ग्रामीण लोकल इंदौर को बताते हैं कि भगोरिया, भगोर रियासत को जीतने का प्रति पर्व है। भगोरिया पर्व, भगोर रियासत की जीत की वार्षिक खुशी के रूप में जाहिर करने के लिये मनाया जाता है। इस अवसर पर जनजातीय समाज के लोग खूब नाचते हैं, गाना गाते हैं और ठीठोली करते हैं। सामूहिक नृत्य इस भगोरिया पर्व की मुख्य विशेषता है। एक अन्य किवदन्ती के अनुसार भगोर किसी समय इस अंचल का प्रसिद्ध व्यापारिक केन्द्र हुआ करता था और यह के ग्राम नायक द्वारा प्रतिवर्ष जात्रा का आयोजन किया जाता था। जिसमें आसपास के गाँवों के सभी युवक-युवतियों को आमंत्रित किया जाता था। सजधजकर युवक-युवतियाँ इसमें हिस्सा लेती थीं। इस प्रकार ग्राम नायक के द्वारा मेला का आयोजन किया जाता था, जो कि बाद में इसी परम्परा की शुरूआत को भगोरिया का नाम दिया गया।
भगोरिया के संबंध में एक अन्य किवदंती के अनुसार शिवपुराण में भी भगोरिया का उल्लेख आता है। जिसके अनुसार भव एवं गौरी शब्द का अपभ्रंश भगोरिया के रूप में सामने आया है। भव का अर्थ होता है शिव और गौरी का अर्थ पार्वती होता है। दोनों को एकाकार होने को ही भवगौरी अर्थात भगोरिया कहा जाता है। फागुन माह के प्रारंभ में जब शिव और गौरी एकाकार हो जाते हैं, तो उसे भवगौरी कहा जाता है और यही शब्द बाद में अपभ्रंश होकर भगोरिया के नाम से प्रचलित हुआ है। भगोरिया का वास्तविक आधार देखें तो पता चलता है कि इस समय तक फसलें पक चुकी होती हैं तथा किसान अपनी फसलों के पकने की खुशी में अपना स्नेह व्यक्त करने के लिये भगोरिया हाट में आते हैं। भगोरिया हाट में झूले, चकरी, पान, मिठाई सहित श्रृंगार की सामग्रियाँ, कपड़ों, गहनों आदि की दुकानें भी लगती हैं।
भगोरिया पारंपरिक रूप से उत्साह के साथ मनाया जाता है। प्रात:काल से ही युवक एवं युवतियों की टोलियाँ अपने-अपने गाँव से निकल भगोरिया मेले में प्रवेश करती दिखाई देती हैं। ढोल-मादल की थाप पर नृत्य कर भगोरिये में रंग जमता है।