लोकल इंदौर 27 मार्च विशेष ।भगवान विष्णु के दस अवतारों में से नृसिंह चौथे अवतार हैं और सबसे रौद्र भी , जिन्हें भक्त प्रहलाद की रक्षा
के लिए ये अवतार लेना पड़ा । प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप ने कठोर तप करके भगवान ब्रम्हा को प्रसन्न कर अमर होने का वरदान माँगा पर ब्रह्मा ने कहा कि प्राणियों के लिए अमरता नहीं है इस वजह से हिरण्यकश्यप ने वरदान माँगा की न मैं दिन में मरुँ ,न रात में मरुँ… न आसमान ने मरुँ ,न धरती पर मरुँ…. न इंसान मार सके ,न जानवर…. न घर के अन्दर मरुँ ,न बाहर मरुँ…. न शास्त्र से मरू ,न शस्त्र से… ब्रम्हा ने हिरन्यकश्यप को ये वरदान दे दिया ।
इस वरदान को पाकर हिरण्यकश्यप का अहंकार दिनों दिन बढ़ता चला गया । यही वजह रही की उसे अपने पुत्र प्रहलाद की विष्णु भक्ति भी रास न आई । इसी के चलतेप्रहलाद को मारने के हिरण्यकश्यप ने कई जतन किये गए लेकिन भक्त प्रहलाद का बाल भी बांका न हो सका । थक हार कर हिरण्यकश्यप ने आग में न जलने वाली अपनी बहन होलिका से प्रहलाद को जलाकर मारने का षड्यंत्र रचा । लेकिन आग में प्रहलाद को लेकर बैठी होलिका पर भी प्रहलाद की भक्ति भारी पड़ी । भक्त प्रहलाद बच गये और और होलिका जल गयी ।
अंततः हिरण्यकश्यप ने स्वयं प्रहलाद को मृत्यु दंड देने का फैसला किया और फिर प्रहलाद को एक खम्बे से बांधकर कहा हैं अब तेरे भगवान् । इस पर प्रहलाद ने कहा मेरे भगवान् तो सर्वत्र हैं ,इस खम्बे में भी हैं । तो हिरण्यकश्यप ने हँसते हुए प्रह्लाद को कहा बुला ले अपने भगवान् को ,वो बचा सकता है तो आज बचा ले तुझे… इतना ही कहना था कि भक्त प्रहलाद की विनय पर उसके वरदान के अनुरूप भगवान् विष्णु ने खम्बे से नृसिंह का अवतार लेकर संध्या के समय ,देहरी पर बैठ ,अपनी गोद मे रखकर अपने हाथों के नाखूनों से हिरन्यकश्यप का वध किया और तब से ही होली मनाने की परंपरा ने जन्म लिया ।मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिसका नाम भगवान नरसिंह के नाम से ही पड़ा है में भगवान नरसिंह अपने उसी रूप में जिस रूप में उन्होंने हिरन्यकश्यप का वध किया था । रिपोर्ट सभार आशिष जैन आशु