मंत्री मंडल विस्तार : दरक रहे मालवा निमाड़ को बचाने की कवायद

लोकल इंदौर (प्रदीप जोशी)। ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में प्रवेश किए जाने के बाद भाजपा में एक नया अध्याय लिखा जा रहा है। सत्ता परिवर्तन के तीन माह से उपर का समय व्यतित होने के उपरांत मंत्री मंडल का गठन किया गया। भाजपा में निश्चित रूप से ऐसी उथल पुथल पहले कही नहीं देखी गई। लगभग सभी संभागों में वरिष्ठ नेताओं की सिरे से उपेक्षा हुई है और सियासी जानकार इसे भाजपा में भविष्य की बड़ी टूट के रूप में देख रहे है। वही इस पूरी सियासत का दुसरा पहलू भी है जो भाजपा खास कर शिवराजसिंहचौहान की एक अलग रणनीति को दर्शा रहा है। मालवा निमाड़ को मंत्री मंडल में दिए गया प्रतिनिधित्व इसी रणनीति का हिस्सा है। खास बात यह है कि मंत्री मंडल में शामिल अधिकांश चेहरे इस बात का सबूत है कि शिवराज दरक रहे गढ़ को बचाने के लिए नए नेतृत्व को खड़ा कर रहे है। कारण साफ है कि पुराने और स्थापित नेताओं की वजह से ही गढ़ कमजोर हुआ था। नए नेतृत्व के हाथों में सूबे की कमान सौपने का फैसला कितना कारगर रहेंगा यह तो भविष्य बताएंगा पर एक बात साफ है कि एकाधिकार बनाने वाले नेताओं को नई भूमिका तलाशना होगी।
सूबे में आधी हो गई भाजपा
मालवा निमाड़ के आठ संसदीय क्षेत्रों में भाजपा ने बीते देढ़ दशक में अपनी अच्छा खासी ताकत बड़ा ली थी। 2013 के विधानसभा चुनाव में सूबे की 52 सीटों पर भाजपा का कब्जा था और 2018 में यह सीट आधी हो गई। कांग्रेस ने जोरदार वापसी करते हुए 36 सीटों पर कब्जा जमा लिया वही भाजपा 28 सीटों पर सिमट गई। यह परिणाम अनेपेक्षित था जिसकी उम्मीद भाजपा के रणनीतिकारों को भी नहीं थी। गढ़ दरकने की चिंता संगठन के साथ साथ संघ में भी छा गई। गढ़ में कमजोरी का कारण वे नेता थे जिन पर संगठन ने खूब भरोसा किया था।
सत्ता सुख भोगने वाले मंत्री खेत रहे
2018 के चुनाव में पार्टी के पतन के लिए मालवा निमाड़ के सांसद, मंत्री और वरिष्ठ नेताओं को जिम्मेदार ठहराया गया। उस दौर में मालवा निमाड़ में मंत्री अर्चना चिटनीस, अंतरसिंह आर्य, पारस जैन, विजय शाह, दीपक जोशी, बालकृष्ण पाटीदार  चुनाव मैदान में थे। उम्मीद थी कि ये मंत्री अपने अपने जिले में भाजपा के कब्जे वाली सीट तो बचा ले जाएंगे। पर परिणाम उलट रहा सत्ता का सर्वाधिक सुख भोगने वाले सभी मंत्री खुद अपने क्षेत्र में उलझ कर रह गए। इनमे सिर्फ विजय शाह, पारस जैन ही अपनी सीट बचा पाए शेष को हार का सामना करना पड़ा।
कद्दावर नेता जो उम्मीद पर नहीं उतरे खरे
 विधानसभा चुनाव से दूरी बनाने और पुत्र को मैदान में उतारने वाले पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय खुद को मालवा निमाड़ का प्रभारी जताने में पीछे नहीं थे। दांवा उन्होंने 63 सीटों का किया था मगर पुत्र की सीट पर ही उलझ कर रह गए। यहां तक की खुद के गृह जिले इंदौर में पार्टी को नहीं संभाल पाए।
 केंद्रीय मंत्री थावरचंद गेहलोत का रहा। पुत्र के लिए आलोट में ऐसे फंसे की उज्जैन जिले की अन्य सीटों पर से ध्यान हटा लिया। ना तो वे अपने पुत्र जितेंद्र को जिता पाए और ना दुसरी सीटों पर कुछ मदद कर सके। उज्जैन संसदीय क्षेत्र की आठ सीटों में से 5 सीट कांग्रेस की झोली में चली गई।
लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने चुनाव में मूंह दिखाई की रस्म अदा की। राऊ विधानसभा क्षेत्र के शहरी वार्डो में कुछ बैठकों में हिस्सा लेने के अलावा कही भी उनकी हलचल नजर नहीं आई। जिस सीट पर गई वो सीट भी नहीं बची उससे अलावा संसदीय क्षेत्र की तीन अन्य सीटों पर भी कांग्रेस का कब्जा हो गया।
ये है सूबे के नए शक्ति केंद्र
सिंधिया के साथ कांग्रेस से नाता तोड़ कर आने वाले तुलसी सिलावट, राजवर्धन दत्तीगांव, हरदीप सिंह डंग को तो पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच स्थापित होने तथा विश्वास जमाने में समय लगेगा। पर भाजपा के नए मंत्री जरूर सूबे के नए शक्ति कें द्र के रूप में उभरेंगे और स्थापित शक्ति केंद्रों को सीधे चुनौती मिलने लगेगी।
उषा ठाकुर -इंदौर की सियासत अब तक ताई और भाई के बीच उलझी हुई थी। इस सियासत में अब दीदी का पदार्पण हो गया है।
विजय शाह – सूबे में पार्टी का आदिवासी चेहरा माने जाने वाले शाह अब अंचल में सबसे पावर फुल नेता बन कर उभरे है।
जगदीश देवड़ा – अंचल के वरिष्ठ और समर्पित नेताओं में गिने जाने वाले देवड़ा के जरिए भाजपा बिखरे हुए आदिवासी वोट बैंक को सहेजने की कोशिश करेगी।
डॉ मोहन यादव – पारस जैन पर केंद्रीत होकर रह गई उज्जैन जिले की राजनीति में पार्टी ने एक नया शक्ति केंद्र मोहन यादव के रूप में स्थापित किया है।
ओम प्रकाश सकलेचा – ओम प्रकाश सकलेचा शिवराज के अलावा पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की भी पसंद है। सकलेचा के रूप में मंदसौर नीमच में अब एक नया नेतृत्व खड़ा हो गया।
प्रेमसिंह पटेल – पार्टी के वरिष्ठ विधायकों में शुमार प्रेमसिंह पटेल निमाड़ अंचल में अब वे एक नए नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित होंगे।
इंदरसिंह परमार – सूबे की जिन पांच सीटों पर चुनाव है उनमे से तीन सीटों पर खाती समाज का खासा प्रभाव है। इंदरसिंह के जरिए उसी वोट बैंक को साधने की कोशिश की गई है।

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