लोकल इंदौर (मनोज दाधीच)। मकर संक्रांति पर्व के सामने आते ही पतंग व्यवसायियों ने अपनी दुकानें सजाने शुरु कर दी है। पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष पतंग के भाव में दस से पच्चीस प्रतिशत की कमी हुई है। बावजूद इसके बाजार में ग्राहकी नदारत है जिससे दुकानदारों में चिंता दिख रही है। हालांकि बाजार में इस बार परंपरागत कागज की पतंग के अलावा पन्नी की पतंग की भरमार दिख रही है। यही नहीं समुद्री तटों पर उडऩे वाली थाईलैंड की कपड़ा पतंग भी बाजार में उपलब्ध हुई है।
पतंगों में मोदी का जादू बरकरार
समय परिस्थिति के बदलाव का प्रभाव पतंग व्यवसाय में दिख रहा है। परंपरागत उचके चकरी की जगह स्टील और फाइबर ने ले ली है। वहीं धागन के मामले में चायनिज डोर का आकर्षण कम हुआ है जिससे बरेली की डोर में मांग बड़ी है। राजनेताओं के चित्र वाली पतंगों में मोदी का जादू बरकरार है।
कोरोना संक्रमण का प्रभाव
कोरोना संक्रमण का प्रभाव पतंग व्यवसाय पर साफ नजर आ रहा है। जहां एक ओर पिछले वर्ष दिसंबर माह में ही पतंगबाज अपनी छतों पर पहुंच जते रहे हैं इस बार कोरोना संक्रमण के चलते ना तो बड़े ना ही बच्चे पतंगबाजी करते नजर आ रहे हैं। हालांकि शहर के परंपरागत पतंग बाजार सजकर तैयार हो गये हैं किंतुग्राहकी का अभाव देखा जा सकता है। दुकानदार आरिफ हुसैन का कहना है कि इस बार पतंग के अभाव में पिछले साल की अपेक्षा लगभग दस से पच्चीस प्रतिशत की कमी भी हुई है। बावजूद उसके ग्राहकी नदारत है। ज्यादातर पतंग आज भी जयपुर, बरैली, रामपुर और गुजरात से मंगाई जा रही है। इंदौर में भी कुछ परिवार पतंग निर्माण का काम करते हैं। धागन के लिए चकरी आगरा और दिल्ली से मंगवाई जाती है। परंपरागत पुरानी डिजाइन की पतंग की जगह पन्नी की प्रिंटेड पतंगों ने ले ली है। चकरी के मामले में भी लकड़ी की जगह स्टील तथा फाइबर ने ले ली है।
चाइना डोर का रुझान हुआ कम
चाइना डोर के प्रति लोगों का रुझान कम हुआ है। क्योंकि अब भारत में ही नाइलोन की डोर बनने शुरु हो गई है। हालांकि अभी भी दबे छिपे रुप में यह डोर बिकती है। इंदौर के परंपरागत पतंग निर्माण करने वालों ने पतंग बनाने के बजाए दूसरे शहरों से पतंग बुलवाना शुरु कर दी है। किंतु मांग होने पर पतंग निर्माण करके दी जाती है।
थाईलैंड की कपड़ा पतंग…जो धोई जा सकती है
रफीक पतंग हाउस के संचालक हुसैन ने बताया कि इस बार बाजार में उठाव न होने का अंदेशा पहले से ही था। किंतु फिर भी हिम्मत करके हमने थाईलैंड से कपड़ा पतंग मंगवाई है। इस प्रकार की पतंग पूरी दुनिया में विभिन्न समुद्री तटों पर उड़ाई जाती है। इस पतंग की खासियत यह है कि यह पतंग कपड़े से बनी होती है। जिससे यह खराब नहीं होती तथा धोई जा सकती है किंतुआसमान में उड़ाने पर पेंचबाजी में यह पतंगे कट जाती है इसलिए ग्राहकी का अभी अभाव दिख रहा है।इस प्रकार की पतंग बाजारों में ६० रुपए से लेकर ५०० रुपए तक की कीमत रखती है। इन्हें उड़ाने के लिए मैदान चाहिए होता है और इन्हें आसानी से उड़ाया जा सकता है।
डंडिया, मुंडिया, पट्टियां गायब…
बाजार में पिछले वर्षों में पन्नी की पतंग ने जगह बना ली है। हालांकि हल्की होने के कारण इनके प्रतिपुराने पतंगबाजों में कोई आकर्षण नहीं है किंतु बच्चे बड़े चाव से इन पतंगों को खरीदते हैं। इसके चलते बाजार से परंपरागत ताव की पतंग बनना कम जरुर हुई है लेकिन इन पतंगों में प्रचलन में रही डंडिया, मुंडिया, पट्टियां, चांदबाज, हारबाज, कानबाज जैसी डिजाइनवाली पतंग गायब हो गई है और इनकी जगह पन्नी की प्रिंटेड पतंगों ने ले ली है। गौरतलब है कि प्रिटिंग में वेस्ट पन्नी का उपयोग पतंग बनाने के काम में आने लगा है। जिससे पतंगों की कीमतों पर भी कमी आई है। प्रचार प्रसार के लिए बनने वाली पतंगों में भी प्रिंटेड पतंग की मांग बनी हुई है।
बरेली की बहार, कीमत कम
चाइना डोर की मांग कम होते ही बरेली की धागन फिर से बाजार में उपलब्ध हुई है। पहले की अपेक्षा इसके भाव में कोई ज्यादा परिवर्तन नहीं हुआ है किंतु पतंगों की कीमतों में काफी कमी आई है। बरेली की धागन एक रील ६० रुपए में मिल रही है तो ६ रील ढाई सौ रुपए में मिल रही है। बरेली की धागन पतली और मोटी दो प्रकार की है जिसमे पांडा सतरंगी दो रील ढाई सौ रुपए में मिलती है। स्टील फाइबर के उचके दस रुपए से पचास रुपए तक मिल रहे हैं। इक्कनाजो पिछले साल तीन रुपए का था अब ढाई रुपए में मिल रहा है। वहीं दुअन्ने की कीमत भी पांच रुपए से घटकर तीन रुपए हो गई है।