
साले-दामाद का कोई चक्कर भी नहीं है….
कार्यकर्ताओं के साथ नेताओं को भी संदेश दे दिया था। वहीं दूसरी ओर इनके समर्थकों का कहना है कि उन पर कोई व्यापमं जैसा आरोप नहीं होने के साथ उनका कोई रिश्तेदार भी बदनाम नहीं है और उन्होंने मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री का पद पार्टी की प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए छोड़ा था। यहां मुकदमा दर्ज होने के बाद भी लोग पद नहीं छोड़ रहे हैं। कुछ तो संकेत निश्चित ही कहीं से मिल रहे हैं, वरना उमा भारती के समर्थक अचानक शिवराजसिंह चौहान के विकल्प के रूप में उन्हें बताना शुरू नहीं करते। वे बता रहे हैं योगी की तरह भगवाधारी हैं, आक्रामक राजनीति करती हैं, साले-दामादों का कोई चक्कर नहीं है और उन्होंने पिछला चुनाव उनकी रीढ़ की हड्डी में लगातार दर्द होने के कारण नहीं लड़ा था, परंतु इस समय जितनी तेजी से भाजपा में रीढ़विहीन लोगों की आवक होने लगी है तो ऐसे में रीढ़ के नेता की बड़ी जरूरत है, जो पार्टी की विचारधारा को ही आगे रखकर काम करे। वैसे भी भाजपा की नई गाइड लाइन में जो संशोधन हुआ है, उसके अनुसार यदि कोई भाजपा से निकलेगा तो वह सूपर्णखा से लेकर रावण तक माना जाएगा, परंतु जो भाजपा में वापस आएगा, वह सीता और राम की तरह ही पूज्यनीय होगा।
सांवेर में पंडितों को लामबंद कर रहे है दादा दयालू…
सांवेर में लंबे समय से ब्राह्मणों ने पेलवान के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था। अब सांवेर विधानसभा के लगभग पच्चीस गांव में ब्राह्मण वोटों की सुपारी एक बार फिर दादा दयालू के हाथ में पहुंच गई है। भले ही उनके साथ अन्याय हुआ हो, पर वे इस बार पेलवान के साथ अन्याय नहीं चाहते। पिछले चार दिनों में जस्सा कराड़िया में सुनील शर्मा, मांगलिया में संदीप जोशी (जो पहले कांग्रेसी थे) सहित अन्य बैठकों में भाजपा को जिताने का अभियान शुरू किया है। सारी बागडोर आनंद पुरोहित को दे रखी है। दादा की दी हुई लौंग मथर-मथरकर यहां ब्राह्मणों को खिलाई जा रही है। यदि ब्राह्मणों ने साथ दिया तो मथरी हुई लौंग काम कर जाएगी, वरना अच्छे-खासे चुनाव में कही मंथरा लौंग हो गई तो बैठे-बिठाए पेलवान को वापस छावनी की दुकान पर कामकाज संभालना पड़ेगा। हालांकि पेलवान भी लड्डू से लेकर सब तो खिला रहे हैं, इसके बाद समय बताएगा क्या होगा।